माणिक और हीरे तो रत्नों के राजा कहलाते है | उनके बाद यदि कोई दूसरा रत्न रत्नों का उपराजा कहलाने का अधिकारी है तो वह नीलम है | कुछ लोगो को शायद यह जानकर आश्चर्य होगा की लाल रंग का माणिक एवं नीले रंग का नीलम एक ही खनिज कोरन्डम के दो रूप है | नीला कोरन्डम नीलम तथा लाल कोरन्डम माणिक कहलाता है | एक ही खनिज कोरन्डम के हो के भी इनमे भिन्नता है | नीलम माणिक से थोड़ा कठोर होता है इसलिए दोनों के विशिष्ट गुरुत्व में भी अंतर होता है | नीलम का विशिष्ट गुरुत्व 4.08 है जबकि माणिक का 3.99 से 4.06 तक होता है |
खनिज विशेषज्ञ फ्रेडरिक मोह के कठोरता मानदंड के अनुसार इसका काठिन्य 9 है | प्राचीन समय में नीलम को कोई नहीं जानता था तथा आज जो रत्न लाजवंती (लापीस लॉजुली) कहलाता है और जिसका नीलम से कोई सम्बन्ध भी नहीं वही रत्न नीलम के नाम से जाना जाता था | नीलम में प्रिज्मैटिक रंग प्रदर्शित करने की क्षमता हीरे की अपेक्षा नहीं के बराबर होती है | क्योंकि कोरन्डम में प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कम होता है इसलिए इसमें दमक एवं जाज्वल्यता भी हीरे की तुलना में कम होती है |
यह ऑक्सीजन और एल्युमीनियम का योगिक है जिसमे 97.51 एल्युमीनियम, 1.89 आयरन ऑक्साइड और 0.80 सिलिकॉन होता है | थोड़ी मात्रा में कोबाल्ट, लोहा या टाइटेनियम मिला देने के कारण ही नीले रंग का दिखाई देता है | नीलम में रंगों के फैलाव में मणिको की अपेक्षा अधिक अनियमितता पाई जाती है | नीलम का नीला रंग ताप देने से ख़राब हो जाता है | ठंडा होने पर यह अपना चमकीला सुन्दर रंग खोकर एक कांतिहीन सुरमई या बादलो जैसा रंग धारण कर लेता है |
नीलम के विभिन्न प्रकार
भारतीय नीलम तो अति सरलता से अपना रंग गवा देता है | फिर भी हलके रंग धारियो वाले नीलम को ताप विधि द्वारा रंगहीन नीलम में परिवर्तित करना संभव है | रंगहीन या हलके रंग वाले नीलमो में रंगीन धरियो का विभाजन समरूपता लिए हुए नहीं होता और कभी कभार ही ऐसे नीलमो के रंगों में समरूपता नज़र आती है |रंगों का समरूप विभाजन नहीं होने के कारण बहुत से नीलम ऐसे मिलते जिनका एक सिर यदि रंगीन है तो दूसरा सिरा रंगहीन, या दोनों सिरे रंगहीन है और बीच में रंगीन | कभी-कभी यह क्रमश: रंगीन एवं रंगहीन धारियों के रूप में भी मिलते हैं | एक 19.125 कैरट का नीलम मिनरलॉजिकल कलेक्शन में रखा हुआ हैं |
कभी-कभी सुनहले, नारंगी और बैगनी रंग के नीलम भी मिलते हैं | बिलकुल गहरे शेड का नीलम जो रंग में कालेपन की सीमा तक पहुँच जाये इन्की सफायर तथा बहुत पिली झलक मारने वाला हल्का नीला नीलम नारी नीलम ( फेमिनिन सफायर ) या जल नीलम कहलाता हैं |
रंगों के गहरेपन का नीलम के प्रभाव पड़ता हैं | गहरे रंगों के पारदर्शक नीलम चूँकि दुर्लभ होते हैं इसलिए इनका मूल्य भी अधिक होता हैं | ऐसे नीलम जिनकी ऊपरी सतह पर बिभिन्न कणों से देखने पर एक छह किरणों वाला सितारा दिखाई देता वह स्टार सफायर कहलाता हैं तथा अत्यंत मूल्यवान होते हैं |
ऐसे नीलम जिनकी ऊपरी सतह पर विभिन्न कोणों से देखने पर एक छह किरणों वाला सितारा दिखाई देता हैं वह स्टार सफायर कहलाते हैं तथा अत्यंत मूल्यवान होते हैं | यह सितारा एक विशेष तराश, "कैबोकॉन कट" में तराशे जाने से ही अधिक उजागर होता हैं | स्टार माणिक की अपेक्षा स्टार नीलम प्रचुर मात्रा में मिलते हैं |
कुछ नीलम में छह किरणों का सितारा न बनकर केवल एक ही किरण बनती हैं | ऐसे नीलम लहसुनिया नीलम या कैट्स ऑय सफायर कहलाते हैं | सितारा बनाने वाले नीलम पूर्णतः साफ़ एवं पारदर्शक कभी नहीं होते | इनमे रंगहीन व नीली धारिया क्रमसः होती हैं |
कैबोकॉन तराश में यूरोप में केवल स्टार नीलम ही तराशे जाते हैं | जबकि भारत में सादा नीलम भी इस तराश में तराशा जाता हैं | हीरे व माणिकों में तराशी जाने वाली लगभग सभी तराशो में नीलम भी तराशा जाता हैं | गहरा नीला नीलम नर नीलम (मस्क्युलिन सफायर) व हल्का नीला नीलम नारी नीलम (फेमिनिन सफायर) कहलाता हैं |
सुन्दर रंग वाला, कोमल स्पर्शी, वजन में भारी, पारदर्शक, चिकना दाग धब्बे व चीर रेखाओं रहित, सुन्दर आकार वाला, सुडौल, आभा व कान्तियुक्त, अलसी के फूल या मोर की गर्दन जैसे नीले रंग, झिलमिलाते पानी वाला नीलम सर्वोत्तम नीलम होता हैं | जालायुक्त, दुरंगा, धागे जैसे चिंन्ह वाला, रेखा व गढ़े वाला, अंदर से रंगहीन, चमक रहित, डंक वाला, दूधिया, चीरी, सुन्न, धब्बे वाला तथा त्रुटिपूर्ण नीलम दोषपूर्ण नीलम होता हैं |
आकर्षक रंग वाले व त्रुटिहीन नीलम एच मूल्य पाते हैं | बड़े आकार के तथा उत्तम श्रेणी के नीलम इसी प्रकार के माणिकों की अपेक्षा अधिकता से प्राप्त होते हैं | माणिक की अपेक्षा नीलम काम मूल्यवान होता हैं |
उत्तम श्रेणी के दो-तीन कैरट के नीलम का मूल्य इसी प्रकार के ऐसे ही वजन के हीरे के बराबर होता हैं | त्रुटियुक्त नीलम जिनके रंगों में अत्यधिक अनियमिमता व पीलापन हो कुछ शिलिंग कैरट से अधिक मूल्य नहीं पाते |
प्रसिद्ध नीलम और इतिहास
बड़े माणिकों की तुलना में बड़े नीलम अधिक मिल जाते हैं | परंतु इनमे त्रुटियों की संभावना अधिक होती हैं तथा माणिक की अपेक्षा इनमे बादल, दुधियापन, अर्ध पारदर्शक इत्यादि विद्यमान होते हैं |कुछ नीलम अपने अत्यंत आकर्षण एवं आकार के कारण प्रसिद्ध हुए हैं | ऐसे ही बर्मा से प्राप्त एक दैदीप्यमान 951 कैरट का नीलम सन 1827 में ऐवा के राजा के खजाने में देखा गया था | पेरिस के एक संग्रहालय में 132 कैरट का एक रफ़ (बिना तराशा हुआ) नीलम था जो की बंगाल में मिला था | इसे रोजपोली नीलम कहते हैं |
पेरिस के उसी संग्रहालय ( जार्डिन डेस प्लांट्स) में एक दूसरा दो इंच लंबा व डेढ़ इंच मोटा नीलम है | एक 100 कैरट से भी अधिक वजन का नीलम ड्यूक ऑफ़ डिवोनशायर के पास था | उसका निचला भाग स्टेप कट में था जबकि ऊपर से उसे ज्वलंत तराश ( ब्रिलियंट कट) में तराशा गया था |
प्रसिद्ध नीलमो में जिनमे गहरे इन्की व त्रुटियुक्त नीलम भी शामिल है एक 252 कैरट का नीलम सन 1862 में लन्दन में दिखाया गया था | एक सुन्दर नीला नीलम जिसके एक ओर पीत सिघम था (225 कैरट का) सन 1867 में पेरिस में प्रदर्शित किया गया था | अमेरिका के अमेरिकन म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री में 536 कैरट का नीलम है जो की स्टार ऑफ़ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध है | इसी म्यूजियम में 116 कैरट का काले सितारे वाला नीलम है जिसको मिडनाइट स्टार कहते है | एक नीलम 337.10 कैरट का मिला था | एक बड़ा नीलम लंका के रत्नपुर क्षेत्र से मिला था | तराशने व पॉलिश करने के बाद भी इसका भर 446 कैरट था |
ऑस्ट्रेलिया की ग्रीनलैंड खान से सन 1935 में संसार का सबसे बड़ा नीलम 2302 कैरट का प्राप्त हुआ था | एक कारीगर ने इसको 1800 घंटे के कड़े परिश्रम के बाद राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के सिर के रूप में तराशा था | यह अब राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन संग्रहालय में है |
सन 1955 ने हैदराबाद के किसी नवाब के पास एक इस नीलम था जो की संसार का सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम समझा जाता है | उसको उन्होंने नेशनल परचेज कमेटी के हाथ बेच था | यह नीलम एक बड़े अंडे के आकार का है जिसको तराशकर बूँद की आकृति दे दी गयी है | इसका वजन 916 कैरट (16 तोले), लंबाई 3.5 इंच और चौड़ाई दो इंच व मोटाई एक इंच है |
ब्रिटैन की एक फर्म ने सन 1920 में इसका मूल्य 40,000 पौंड लगाया था | इस दावे को की यह संसार का सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम है किसी ने भी चुनौती नहीं दी है | किसी समय यह श्री लंका के एक बोध भिक्षुक के पास था | फिर बहुत से व्यक्तियों से होता हुआ मैसूर के टीपू सुल्तान के पास पहुंचा था | जिसको उन्होंने ने सन 1794 में अपने एक दरबारी अर्थात नवाब साहब के पूर्वजो में से किसी को भेंट स्वरुप दिया था | एक 1000 कैरट का नीलम सन 1930 में भी मिला था |
केवल पारदर्शी व सुन्दर रंग वाले नीलम ही रत्नों के रूप में प्रयोग होते है | परंतु ऐसे बड़े बादल युक्त मणिभ जिनमे प्रायः एक छोटा सा भाग ही पारदर्शक एवं साफ़ होता है, उसको भी कुशल रत्न तराश बड़ी कुसलतापूर्वक तराश कर सुन्दर रत्नों में परिवर्तित कर देते है |
नीलम की पहचान
वाटर सफायर ,क्यानाइट, ब्लू टुर्मलीन, नीला पुखराज और स्पाइनल ऐसे रत्न है जिनमे प्रायः नीलम का धोखा हो सकता है | ऐसे ही रत्नों में हायनाइट, ब्लू डायमंड और अक्वामरीन को भी जोड़ा जा सकता है |इनको पहचानने के लिए यदि इन्हें 3.6 विशिष्ट गुरुत्व वाले मेथिलीन आयोडाइड के भारी विलयन में डाला जाए तो नीलम तो तीव्रता से डूब जाता है जबकि स्पाइनल व क्यानाइट छोड़कर शेष सब तैरने लगते हैं |
ब्लू डायमंड को तो खुरचकर ही पहचाना जा सकता है अर्थात नीलम उससे खुरच जाता है जबकि शेष सब रत्नों के द्वारा नीलम खुरचा जा सकता है | ब्लू टुर्मलीन का नीलापन नीलम से भिन्न होता है फिर होता है | उसका रंग आसमानी नीला होता है |
कायानाइट में आयताकार चिराव होते हैं जो कि नीलम में नहीं मिलते | कायानाइट का नीलापन नीलम से इतना मिलता है कि इसका नाम ही सैपर रख दिया गया है (जबकि नीलम को अंग्रेजी में सफायर कहते हैं) परंतु इसको पारदर्शकता नीलम की तरह साफ नहीं होती |
सफेद नीलम, हीरा, रंगहीन लालड़ी, गोमेद, सफेद पुखराज, स्फटिक और फीनाकाइट भी एक दूसरे का भ्रम उत्पन करते हैं इनको भी ऊपर दी गई विधियों से ही पहचाना जा सकता है |
प्राकृतिक नीलम अपने आकार की तुलना में हल्का होता है तथा इसमें विद्यमान रंगों की धारियां सीधी नजर आती हैं धूप में रखने पर प्राकृतिक नीलम चमकने लगता है तथा इसमें से तेज किरणें निकलती है | प्रिज्म में देखने पर इस में बनफ़शी रंग की किरणें निकलती दिखाई देती हैं |
नीलम के पाए जाने वाले स्थान
नीलम अधिकतर थाईलैंड, कश्मीर, वर्मा, बैंकॉक, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया विशेषकर न्यू साउथ वेल्स रोडेशिया और मोंटाना ( संयुक्त राज्य अमेरिका ) में मिलता हैं | शताब्दियों से संसार का सर्वश्रेष्ठ नीलम भारत के कश्मीर क्षेत्र में मिलता रहा हैं | आज भी यहाँ का नीलम अपने गुणों में अद्वितीय मन जाता हैं | सन 1881-82 में यहाँ इसकी खोज हुई थी | कश्मीर में इसकी खाने संजाम के पश्चिम-उत्तर-पश्चिम में लगभग 15000 फुट की ऊँचाई पर ढाई मील दूर झांसकर के पदार क्षेत्र में हैं | यहाँ का नीलम इतना सुन्दर होता हैं की बिना तराशे ही इसके विषय में कुछ भी न जानने वाले लोगों को भी अपनी और आकर्षित कर लेता हैं |किसी भी अन्य देश की अपेक्षा यहाँ का नीलम मूल्यवान मन जाता हैं | यहाँ के नीलम की कच्चे नीलम में यह विशेषता होती हैं की जरा सा रंग भी पूरे नीलम को रंगीन बना देता हैं परंतु इसमें एक त्रुटि भी हैं की खान की मिट्टी इस से चिपकी रहती हैं जो की सरलता से अलग नहीं होती |पहले यहाँ के निवासी चूंकि इसका मूल्य नहीं जानते थे इसलिए इन्हें शिमला व देलही के व्यापारियों को कोड़ियो के मोल बेच देते थे | तत्पश्चात जब वह के राजा को इसका पता चला तो उसने वह जाने पर रोक लगा दी | बिना सरकारी अनुमति पत्र के कोई वह नहीं जा सकता था | बड़े नीलम भी यहाँ काफी मिलते हैं जो की प्रायः पाँच इंच लंबे व तीन इंच मोठे होते हैं | 100-300 कैरट के नीलम भी यहाँ मिले हैं | परंतु नीलम निकालने में सबसे बड़ी कठिनाई कुछ महीनों को छोड़कर पूरे वर्ष बर्फ जमी रहना हैं इसलिए यहाँ से पाए जाने वाले नीलम का मूल्य अधिक होता हैं |
बिजली के प्रकाश में भी यहाँ के नीलमों के रंग में कोई परिवर्तन नहीं आता | जबकि अन्य स्थानों का नीलम नेवी ब्लू रंग का हो जाता हैं | कश्मीर के अतिरिक्त भारत में नीलम आबू पर्वत के अंचल, विंध्य, हिमालय तथा सलेम में मिलता हैं | बर्मा में यदि 500 माणिक मिलते हैं तो एक नीलम भी निकलता हैं | यहाँ 1988, 951, 820 व 253 कैरट के नीलम भी मिले थे | वैसे 6-9 कैरट तक के नीलम तो यहाँ प्रायः मिलते रहते हैं | अब तक यहाँ से सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम 79.5 कैरट का मिला है | लंका में इसकी वार्षिक पैदावार केवल 15000 पौंड तक ही है |
नीलम के अन्य प्रयोग
संश्लिष्ट और दोषपूर्ण नीलमों का उपयोग अब्रेसिव (abrasive) पदार्थ के रूप में किया जाता है | रत्नों की पॉलिशिंग, प्रकाशीय तालों की घिसाई, स्पार्क प्लगों के निर्माण, घड़ियों, रेडियो के ट्रांसमीटरों तथा वैज्ञानिक यंत्रो में लगाने आदि में भी इनका प्रयोग किया जाता है |
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